औरत, आदमी और छत , भाग 25
भाग,25
मिन्नी नींबू पानी बना कर ले जाती है।वो भरा गिलास उसकी तरफ बढ़ा देती है,गिलास के साथ साथ वो उसका हाथ थाम कर अपने पास बैड पर बिठा लेता है।
"मुझ से नाराज़ हो न मिन्नी?
""आप की तबीयत ठीक नहीं आप आराम करें।
"कुछ नहीं हुआ है मुझे,बस मेरी बात का ज़वाब देदो।
क्या ज़वाब दूं वीरेन , हाँ इतना जरूर कहूंगी कि समय के साथ इंसान में थोड़े बदलाव प्राकृतिक हैं ,पर चंद दिनों में एकदम परिवर्तन मैंने आप में ही देखा है, खैर छोड़ें, प्लीज़ ये पी लें।
" तुम भी पी लो मेरे साथ ही, प्लीज़।
"आप की गाड़ी रूकी तब मेरी चाय खत्म ही हुई थी।
" अच्छा ठी क है मत पीओ ,पर यहाँ मेरे पास ही रहो।
"वीरेंन मै खाने की तैयारी करती हूँ,आप आराम करें।
"नहीं खाना, खाना वाना,तुम बस मेरे करीब रहो।
देखिये, आपकी तबीयत ठीक नहीं है।
"कुछ नहीं हुआ मुझे कल सुबह से ज्यादा पी गई थी।आज नहीं लूंगा तो ठीक हो जाऊँगा।
" मै आती हूँ गैट बंद करके।
"मैंने दरवाजा बंद कर दिया था ,आती दफ़ह।
"वीरेन
"मि न्नी डियर तुम भी जानती हो, होना वही है जो मैं चाहता हूँ, तो इस कशमकश को छोड़ दो।
रात को खिचड़ी ही बनाई थी। सुबह की तैयारी करके मिन्नी सो ग ई थी।आजकल स्कूल में बच्चों के टेस्ट चल रहे थे। समझाना टेस्ट बनाना, फिर चैक करना कुछ साँस्कृतिक कार्यक्रमो की भी तैयारी चल रही थी।मिन्नी को आने में देर हो जाती थी,क्योंकि नाटक से लेकर डांस कार्यक्रम की भी वही इंचार्ज थी। चार अक्टूबर को सभी कार्यक्रम थे।ज़़िदगी आगे सरकती जा रही थी,क्योंकि वक्त कभी रूकता जो नहीं।
हर चीज जो घटित हो रही थी वो होनी ही थी।क्योंकि ये सब पूर्व निर्धारित होता है, ये कहना कि ये कर लेते तो ये न होता, वो कर लेते तो वो न होता ये सब घटनाओं के घटित होने के बाद की फिलासफी होती है,वो चाहे हम दूसरों पर लागू करें या खुद पर।
नवरात्रि के दिन शुरू होने थे कल से,मिन्नी बहुत ही उहापोह में थी वो हर बार सभी नवरात्रि व्रत करती है,पर इस बार कुछ समझ नहीं आ रहा कैसे करे,और फिर वीरेन का रोज़ पीना और ये लोग तो शायद नवरात्रि की पूजा भी नहीं करते।डाक्टर ने भी तो व्रत वगैरह के लिए मना किया था। खैर मैं पूजा तो कर ही सकती हूँ। नारियल और माता की चूनरी, अभी ले आती हूँ ,अभी तो साढे सात ही बजे हैं। यहाँ पास में किसी न किसी स्टोर पर मिल जायेंगे। वो घर से निकली ही थी कि लाईट चली ग ई थी। आजकल तो अंधेरा भी जल्दी ही हो जाता है। उसनें दो तीन स्टोर से पूछा पर नहीं मिला, आखिरी स्टोर वाले ने बताया कि मैम थोड़ा आगे जायेंगी तो एक दो स्टाल लगें है इन चीजों के वहीं फर सब सामान मिल जायेगा। काफी दूर चलने के बाद उसे दूर से कुछ चूनरी जैसा चमका था।वो सारा सामान लेकर आ ही रही थीकि उसे बूरी तरहं से चक्कर सा महसूस हुआ वो वहीं बैठ ग ई। कोई रिक्शा भी नहीं दिख रहा था कि उसी में ही घर चली जाती। वो हिम्मत करके खड़ी हुई थी,उसनेएक पानी की बोतल खरीदी थी।
तभी उसके मोबाईल की घंटी बज उठी थी।वीरेन का फोन था।
" कहाँ हो मैडम सवा आठ बज ग ए हैं।
वीरेन मैं कुछ सामान लाने आई थी मुझे रास्ते में चक्कर आ गया तो यहाँ बैठ ग ई थी साईड में, अभी धीरे धीरे पहुंच जाऊँगी।
"रिक्शा पकड़ लो ,हो कहाँ तुम इस वक्त?
रिक्शा कहीं आस पास नहीं दिख रहा है,आ जाऊँगी मैं चाबी तो आपके पास है ही।
फोन कट गया था।
तभी सामने से एक आटो की लाईट पड़ी, मिन्नी ने आटो रोक कर एड्रेस बता कर चलने को पूछा था।
"मैडम पच्चीस रूपये लूंगा।
"भाई हैं तो गलत,पर आप ले लेना।
मिन्नी ने आटो में बैठते ही पच्चीस रूपये खूले निकाल लिए थे। मन ही मन देवी भगवती से स्तूति कर अपने बच्चों के लिए दुआ माँगी थी।आटो से उतरते वक्त फिर चक्कर सा आया गिरने को हुई थी,पर आटोवाले ने भागकर सहारा.दिया था।
"मैडम जी आप ठीक तो है?
" शुक्रिया भाई ,कहकर वह मेनगेट की तरफ बढ़ ग ई थी।
"ये बाजार घूमने का वक्त है वीरेंद्र का लहजा तल्ख़ था
वो चुपचाप सामान वहीं मेज पर रख बैड पर लेट ग ई थी,उसके एक हाथ में फोन और दूसरे हाथ में पानी की बोतल थी। उसनें अपनी डाक्टर का नम्बर डायल किया था।
"मैम गुड इवनिंग, मृणाली बोल रही हूँ।
"जी नहीं ठीक होती तो आपको इस वक्त क्यों डिस्टर्ब करती।
"मैम चक्कर आ रहे हैं।
"मिसेज मृणाली आप की रिपोर्ट में आप एनिमिक हैं और तो कोई समस्या है नहीं, आप ऐसा क्यों न हीं करती आप यहाँ आ जायें ,मै चैक कर लेती हूँ।
मैडम इस वक्त घर पर कोई नहीं है और अकेले इस हालत में आना मुझे संभव नहीं लग रहा।
मृणाली आप नींबू पानी पियें और सिर्फ आराम करे,गर फिर भी ठीक महसूस न करें तो काल कर देना, मै एंबुलेंस भेज दूँगी,कोई रिस्क नहीं लेना है।
जी शुक्रिया मैडम।
"क्या मैं तुम्हें डाक्टर के पास नहीं ले जा सकता।
मिन्नी बिना कुछ बोले, आहिस्ता आहिस्ता उठ कर अपने लिए नीबूं पानी बना लाई दो गिलास पानी में चार नींबू डालकर पी ग ई थी वो। और फिर चुपचाप लेट ग ई थी।
पता नहीं क्या था? आज वीरेंद्र पीने के बाद भी खामोश था।वरना ??
आप अपने लिए रोटी मंगवा ले प्लीज सब्जी और चटनी बनी रखी है।सारी मैं उठ नहीं पा रही हूँ।
वीरेंद्र चुपचाप बाहर चला गया था, शायद किसी से फोन पर बात की थी। उसने बैड रूम की लाईट भी बंद कर दी थी।मिन्नी को पता ही नहीं चला वो कब सो ग ई।सुबह पांच बजे आंख खुली थी तो उसे रात के अपने चक्कर याद आ गए थे।
वो बहुत धीरे से उठी थी,ब्रश करके उसने आज चाय की जगह़ नींबू पानी ही लिया था।कल से बहुत बेहतर महसूस कर रही थी वो।नहाने के बाद उसने बरामदे के बायीं तरफ शेड के नीचे देवी जी का स्थान बना दीया था। लकड़ी वाला छोटा मन्दिर भी वहां टांग लिया था।नवरात्रि के जौ बीज दिए थे,आरती भी कर ली थी। आंखें खुद बखुद ही भर आई थी।
" माँ मेरे गुनाहों को माफ कर देना माँ,एक माँ होते हुए आपनी बेटी को खुद से दूर कर रखा है,कैसी परिस्थितियाँ हैं माँ, मुझे कहीं भी सुकून नहीं, क्या इतने बड़े गुनाह हैं मेरे जिनकी कोई माफी भी नहीं।प्लीज माँ कुछ ऐसा कर दो न कि सब दुरूस्त हो जाये।माँ मेरे गुनाह माफ कर दो माँ ,जुड़े हाथों पर खुद की ही अश्रु बूंदें टपक ग ई थी।
वीरेंद्र के लिए चाय बनाने वक्त आलू उबलने रख दिए थे,रात का आटा ज्यों का त्यों फ्रिज में रखा था, उसे बाहर निकाल कर रख दिया था।
"चाय पी लो वीरेन।
जब तबियत ही ठीक नहीं तो उठना जरूरी है क्या?
अब तो ठीक हूँ तभी तो उठ पाई हूँ, स्कूल से आते वक्त एक बार चैकअप भी करवा लूंगी, हो सकता है बीपी बढ गया हो।
कपड़े बदल लो, नहीं जाना स्कूल पहले डाक्टर के पास चलना है और माँ को फोन कर देता हूँ यहाँ आकर रहे तुम्हारे पास।
पर अब मैं ठीक हूँ वीरेन और स्कूल की एकदम छुट्टी नहीं कर सकती अभी तो डिलीवरी का लगभग दो महीने का समय है। सिलेबस भी रहता है बच्चों का वो भी पूरा करवाना है।
जब सेहत ठीक नहीं तो जबर्दस्ती क्यों उसके साथ और क्या हम इतने मोहताज हैं कि गर तुम काम नहीं करोगी तो क्या फांकें आ जायेंगे जिंदगी में।
तभी कमला आ गईं थी।
मिन्नी ने अपना ओर वीरेंद्र का टिफिन तैयार किया था, अपने लिए दलिया और आलू की सब्जी, वीरेंद्र के लिए पराठे सब्जी और दही। चाय पीने का बहुत मन कर रहा था, पर डर था कहीं फिर से चक्कर न आ जायें,गर चाय नहीं पी तो सिरदर्द जरूर हो जायेगा।
वीरेंद्र नहाकर तैयार हो गया था।
कमला ये प्रसाद बाहर छोटी लड़कियों में बटवा देना अभी।
आज क्या है दीदी।?
नवरात्रि शुरु हो गई है न कमला।
आप ने पूजा कर ली दीदी?
दो घंटे हो ग ए हैं ,ले पहले प्रसाद दे आ बाहर ।।
उसने लस्सी बना कर वीरेंद्र को दी थी, वह सुबह दही की लस्सी या जूस ही लेता था।
तुमनें कुछ लिया है?
मैने नींबू पानी पिया था सुबह ,अब चाय पीने का मन है।
आप पियें लस्सी तब तक मैं चाय बना लेती हूँ।
दीदी प्रसाद बट गया है सारा, बाहर लड़कियाँ मिल ग ई थी।
सुबह सुबह कैसा प्रसाद बटवा रही हो मिन्नी?
नवरात्रि शुरू हो ग ए हैं आज से।
ठीक है मैं निकलता हूँ, आज जल्दी पहुंचना है।
आज स्कूल में मेडिकल की प्रसूति स्त्री रोग विशेषज्ञ से मुलाकात हुई थी,उनकी बेटी इसी स्कूल में 12वी कक्षा में पढ़ती थी।
डाक्टर साहिबा मिन्नी को पहले से जानती थी।उन्होंने मिन्नी को बोला कि अपनी सारी रिपोर्ट मुझे भेजो और तुम्हारी डिलीवरी मैडिकल में ही करेंगे। उनके स्नेह और अपने पन से मिन्नी को काफी हिम्मत मिली थी।वो आज अपनी डाक्टर से भी मिलने ग ई थी। डाक्टर को सभी कुछ सामान्य ही लगा था।फिर भी उन्होंने कुछ दवाई याँ लिख दी थी, नमक कम खाने को बोला था, जो मिन्नी बहुत खाती थी ,पर सवाल जब बच्चों पर आता है तो माँ पता नहीं किस हद तक गूज़र जाती है। मिन्नी ने खाने में नमक बिल्कुल कम कर दिया था।
वो एक दिन स्कूल से आधा दिन.की छुट्टी लेकर मेडिकल में डाक्टर साहिबा से मिलने ग ई थी।उन्होंने उस की सभी रिपोर्ट चैक करके हर सप्ताह चैक करवाने को बोला था।
ये भी ठीक ही हो गया था मेडिकल में तो सभी सुविधाएं होती हैंऔर उपर से डाक्टर भी परिचित, और उन्होंने स्वयं कहा कि डिलीवरी मैडिकल में करवाओ। वहाँ स्पेशल रूम ले लूंगी।
वीरेंद्र पन्द्रह दिन के लिए अपने काम से मद्रास चले ग ए था। न हि मिन्नी ने रूकने को बोला था और न ही उसने स्थिति को भांपा था। दिवाली के दो ही दिन बचे थे ,कमला की मदद से घर की साफ सफाई भी करवा ली थी।आज वो रीति को लेने सुबह सुबह ही निकल ग ई थी। ग्यारह बजे तक वो बेटी को लेकर अपने स्कूल वाले रेजिडेंस पर पहुंच ग ई थी।
मंमी आप बहुत मोटी हो ग ई हो।
अच्छा मिन्नी हँस दी थी।
कृष्णा आन्टी ने पहले ही सफाईकर्मी की साहयता से मिन्नी कि घर साफ करवा दिया था।आज वो रीति को दीये पटाखे मिठाई सब दिलवा कर लाई थी ।एक नयी ड्रेस भी दिलवाई थी उसने रीति को। कृष्णा आन्टी के लिए भी एक सूट खरीदा था उसनें।एक सूट और मिठाई कमला के लिए भी ली थी। वीरेन्द्र तो था ही नहीं आज यहीं रूकी थी , कृष्णा आन्टी उसे समझा रही थी कि इन दिनों ज्यादा काम न करें, थोड़ा आराम भी करे।
आपको तो सब पता है आन्टी, फिर आराम कहाँ संभव है।
आज रात बहुत ही बेफिक्र नींद आई थी। सुबह छह बजे के बाद ही आंख खुली थी।वो भी वीरेंद्र के फोन की घंटी से।
मिन्नी कल दीवाली है,.रात को माँ का फोन आया था कि पहले दिन तुम्हारे हाथ से कुल देवता के मंदिर में प्रसाद चढ़ेगा । बताओ कैसे करोगी , मैं तो शायद कल भी न पहुंच पाँऊ।
भाई साहब तो रोज़ शहर आते है न मैं प्रसाद लाकर पूजा करके उन्हें दे दूंगी, वो माँ तक पहुंचा देंगे।
तुम्हें बुरा नहीं लगेगा कि मैं शादी की पहली दिवाली पर भी तुम्हारे पास नहीं हूँ।
कुछ लोगों के जीवन में भगवान अच्छे शब्द के मायने ही खत्म कर देता है तो उन्हें उस के विपरीत को ही जीना पड़ता है और फिर जिसे जीना ही है उस का क्या बुरा। खैर आप व्यस्त होंगे अपना काम देखें। मिन्नी ने खुद ही फोन काट दिया था।
दोबारा फिर घंटी बजी थी।
फोन क्यों काटा था?
कोई और काम रह गया था क्या?
मैं तुम्हें सिर्फ काम से ही फोन करता हूँ , यही कहना चाहती हो न?
मेरे ख्याल से आप और हम सामने नहीं है, सुबह का वक्त है क्यों झगड़ा कर के दिन खराब किया जाये।
अलमारी में चैक बुक रखी है साईन किया हुआ चैक भी है, मिठाई वगैरह के लिए जरूरत पड़ेगी , निकलवा लेना।
मुझे कोई जरूरत नहीं है।
अब की बार फोन वीरेंद्र ने ही काटा था।
मिन्नी ने कमला को फोन करके बुलवा लिया था, घर की सफाई के बाद कमला को मिठाई और सूट भी दिया था।पूजा करके प्रसाद भी रख लिया था, माँ को फोन कर दिया था। माँ ने भाई साहब को फोन किया था तो उन्होंने कहा था वो बीस पच्चीस मिनट में पहुंच जायेंगे।
मिन्नी ने माँ के लिए भी मिठाई और एक शाल भेजा था। माँ ने उसके लिए घर से ही मीठा बना कर भेजा था खोये और घी से बना हुआ था। कमला के हाथ भाई साहब को चाय और मिठाई भेजी थी,और बच्चों के लिए भी मिठाई का डिब्बा दिया था।
सब का निपटाने के बाद मिन्नी रीति के पास आ ग ई थी। आन्टी ने उसी की रसोई में कढ़ी चावल बनाये थे। मिन्नी आन्टी और रीति ने इकट्ठा खाना खाया था। रीति तो सो ग ई थी। मिन्नीभी बर्तन समेट कर लेट ग ई थी।आन्टी बाथरुम में कपड़े धो रही थी। तभी फोन की घंटी बजी थी,फोन वीरेंद्र का ही था।
क्या कर रही हो?
कुछ नहीं बस लेटी हुई थी।
अब की बार दीदी को दिवाली का तोहफा भी नहीं भेज पाया।ये काम वैसे तो घर की औरतों के होतें हैं पर आप को तो फुर्सत ही नहीं है अपनी दुनिया से तो मेरे परिवार के बारे में क्या सोचेगी।
जी शायद सही कहा आपने। पर चलो आप इतना तो कर ही सकते हैं कि अपनी बहन को फोन पर तो दिवाली की शुभकामनाएं दे दें।
उस के लिए मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है।और फोन कट गया।
एक फीकी सी मुस्कान फिर मिन्नी के चेहरे पर आ ग ई,और ये सोचकर परेशान भी हो ग ई कि वीरेंद्र ने दिन में भी पी रखीहै।
तभी फिर फोन की घंटी बजी थी वो फोन लेकर कमरे से बाहर आ ग ई थी क्योंकि अंदर रीति सो रही थी।
माँ का फोन था,
मिन्नी ये मिठाई क्यों भेजी बेटी?
,आपने भी तो घर पर बना कर मिठाई भेजी है माँ।
तूं तो बेटी है मेरी।
आप भी तो माँ है मेरी।
बातों में तो जीत ही नहीं सकता कोई तेरे से,माँ हँसने लग ग ई,और सुन ये शाल तो बहुत ही हल्का और बहुत ही गरम है, पड़ोस की औरतें कह रही थी, बहुत मंहगा है।
माँ आप मंहगे सस्ते को छोड़े, ये बतायें पंसद आया आपको।
बहुत पंसद आया बेटी।तेरी ननद का भी फोन आया था बता रही थी भाभी ने कोरियर से इतना समान भेजा है की क्या बताऊँ, बच्चों के कपड़े, मेरा बहुत सुंदर सूट, दामाद जी की स्वेटर, दो डिब्बे मिठाई। मुझे तो लगा ही नहीं मिन्नी मेरी छोटी भाभी है मुझे लगा कि ये सब मेरी माँ ने भेजा है।
अरे माँ आप तो, खैर छोड़ो।
अच्छा बता वीरू आ गया?
नहीं माँ वो नहीं आयेंगे।
फिर तूं अकेली?
माँ मैं अपने घर दीये आदि जलाकर यहाँ स्कूल में आन्टी के पास आ जाऊँगी।आप चिंता न करे।
मिन्नी ज्यादा घूमना नहीं तेरी हालत ऐसी नहीं है।
कुछ नहीं हुआ है माँ मुझे। मैं अपना ध्यान रख रही हूँ।
ठीक है बेटी मैं भी जल्दी आती हूं तेरे पास पशुओं का प्रबंध करते ही।
ठीक है माँ नमस्ते।
फोन कटते ही तुरंत वीरेंद्र की घंटी आ ग ई थी।
किस से बात कर रही थी इतनी देर से बिजी आ रहा है।
माँ का फोन था.
तुमनें मुझे बताया क्यों नहीं कि तुमनें दीदी को सब सामान भेज दिया।
इसमें बताने वाली तो कोई बात नहीं थी।
जब मैंने तुम्हें फोन किया तब तुम मुझे बता सकती थी कि मैं सामान भेज चुकी हूँ।
वीरेन आप मुझसे चाहते क्या है? मैं जो भी करती हूँ आप को वही गलत दिखता है, मुझे लगता है हमें एक दूसरे के साथ रहना ही नहीं चाहिए, वरना तमाम उम्र अवसादग्रस्त ही रहेंगे। पन्द्रह दिनों के बाद अपनी प्रेग्नेंट बीवी को फोन करके जो व्यक्ति झगड़ा कर सकता है उस से क्या उम्मीद रखी जा सकती है। हाल चाल और जरूरत पूछना तो दूर , खाम्खां डाट मारना शुरू शुरू।
सारी मिन्नी।
हो ग ई आपकी बातें या और अभी बाकी हैं। मेरी तबियत ठीक नहीं है फोन रख रही हूँ अब।
मिन्नी अंदर जाकर लेट ग ई थी। पेट की हलचल पर दिमाग की हलचल हावी हो रही थी।
मिन्नी एक बार घर जाकर दीये जला आना और पूजा कर आना बेटी।जल्दी जाना और जल्दी आना।मुझे चिन्ता रहेगी।रीति यहाँ अकेली है वरना मैं भी चलती तुम्हारे साथ।
तुम परेशान क्यों हो मिन्नी, किसका फोन था।
पता नहीं आन्टी मुझे लगता है ,हालात ने अभिमन्यु वाला चक्रव्यूह मेरे गिर्द खड़ा कर दिया है, इससे निकलना संभव नहीं है,बस जान ही गवानी होगी।
शुभ बोलो मिन्नी कुछ भी बोले जाती हो।सब अच्छा होगा और फिर मैं हूं न तुम्हार साथ।
आन्टी ने मिन्नी का हाथ पकड़ कर सिर सहलाया था।
रीति बाहर पानी की बाल्टी से दीये निकाल कर रख रही थी।
ये क्या कर रहा है मेरा रीति बेटा?
नानी मैं दीये सुखा रही हूँ, वो सामने वाली दीदी भी तो सुखा रही हैं।
अरे वाह, तुम तो बड़ी मददगार लड़की हो।
मिन्नी शाम को जल्दी ही दीये जलाकर पूजा कर के आ ग ई
थी।आज तबियत ठीक नहीं थी, शरीर तो काम कर रहा थापर मानसिक स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं थी।दिल कर रहा था ,किसी से बात न करू,बस रोती रहूं। पर रोने की भी तो हालात इजाज़त नहीं देते थे।लोग क्या कहेंगें किस किस को क्या जवाब देगी।एक लम्बी साँस छोड़ कर रह जाती है।
रात का खाना आन्टी ने ही बनाया था,वो उसे कोई भी काम नहीं करने देती थी।मिन्नी और रीति ने मिलकर आन्टी के कमरे को झाड़ पोंछ कर दोबारा सैट किया था।
"मिन्नी क्यों नहीं आराम कर लेती तुम, मैं उस कमरे में जातीकितना हूं सारा समय तो यहीं रहती हूं।
"ठीक है न आन्टी,पर मुझे इस कमरे को साफ करते हुए ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपनी माँ का कमरा साफ कर रही हूँ।
ये जो हम जैसे लोग होते है न बेटा, हर जगह रिश्ते ही ढूढते हैं।
इंसान हमेशां वहीं ढूढंता है न आन्टी,जिस की कमी हो उसे।
पर क ई बार धोखा भी खा जाता है।
"सही कहती हो बेटी"। शायद कृष्णा आन्टी का कोई पुराना दर्द उभर गया था।
मंमां मुझे नहाना है।
नहीं बेटा इस समय नहाने से ठंड लग जायेगी। सुबह नहायें गे।
रात भर मिन्नी अतीत की गलियों के ही चक्कर काटती रही थी,वो उस वीरेंद्र को याद कर रही थी जिसे पिछले साल इन दिनों शादी की जल्दी लगी हुई थी।मिन्नी के बार बार समझाने पर भी वो और इंतजार के पक्ष में नहीं था।बोला,मुझे भी तो घर परिवार का सुख देखना है, मैं क्या बुढापे में बाप बनूंगा।इन्सान कितनी जल्दी बदल जाता है ना।।
कुछ रातों की सुबह ही नहीं होती,ऐसा माँ कहती थी,शायद उनके जीवन में पापा की आदतों की वजह से हमेशा अन्धेरा ही रहा, कभी चहचहाती सुबह नहीं हुई। वीरेंद्र कीआदतें भी तो ऐसी ही हैं।
नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी, अपने साथ अपने बच्चों के साथ।
विचारों की नींद से मिन्नी उठ ग ई थी। सुबह के साढे छह बज
चुके थे।आन्टी और रीति अभी सोयी हुई थी।मिन्नी नेअपने और आन्टी के लिए चाय बना ली थी।
आन्टी मैं थोड़ा जल्दी निकलती हूँ, क्योंकि मुझे पूजा के लिए
खीर बनानी होगी।मैं वही नहा लूंगी।आप और रीति तैयार होकर नाश्ता कर लेना।
ठीक है बेटी तुम जा कर आओ।
चलते चलते कमला को फोन कर दिया था, साफ घर बहुत जल्दी साफ हो गया था, मिन्नी ने खीर बना कर नहा कर पूजा करली थी। खीर मंदिर में भी भिजवा थी।
"दीदी आप ने नया सूट क्यों नहीं पहना? आज तो साल भर का त्योहार है।
अरे कमला मेरी हालत तो तुम देख रही हो।अब तो नये कपड़े बाद में ही सिलवाऊंगी।
आप ने जो सूट दिया था न दीदी वो मैने सिलवा भी लिया,
मुझे बहुत पंसद आया और खासकर दिवाली से पहले दिया
आपने,अब आज उसे मैं .पहन सकती हूँ।
अभी क्यों नहीं पहन कर आई?
शाम को नहा कर पहनूंगी दीदी, अभी तो सभी घरों में काम पर जाऊँगी।
ठीक है ठीक है, शाम को पहनना। मिन्नी ने उसे चाय और माँ की भेजी खोये की मिठाई उसे भी दी थी।
मिन्नी वापिस आ ग ई थी।रीति कमरे में बैठ कर अपना स्कूल का काम कर रही थी, आन्टी पास में ही मटर छील रही थी।
निपट गया सब अच्छे से बेटा।
जी आन्टी।।
मंमी नानी चावल बनायेगी मटर डाल के गोभी डाल के।
अच्छा ये किसने कहा आप से।
नानी ने ही कहा और वो हरे पत्ते भी हमने साफ किये हैं, उनकी चटनी बनेगी।
फिर तो हमें भी मिलेगी चटनी भी चावल भी।
जी मिलेंगे मिलेंगे, सब को मिलेंगे।
मिन्नी कुछ खाले।
नहीं आन्टी कमला को चाय और मिठाई दी तो मैने भी खा ली थी।
ये कमला कौन है मंमी?
एक आन्टीहैं बेटा आप नहीं जानते उनको।
तभी फोन की घंटी बज उठी थी,वीरेंद्र का फोन था।
आती हूँ बोलकर मिन्नी फोन लेकर बाहर आ ग ई थी।
कहें ?
गुस्सा नहीं उतरा मैडम अभी भी।
आप काम बोलें जिसके लिए फोन किया था।
मैं पहुंच जाऊँगा दो तीन दिन मे?